वैद्यनाथ मिश्र अर्थात बाबा नागार्जुन जन्मदिवस
आज है 30 जून यानी "जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊं,जनकवि हूँ मैं साफ़ कहूँगा क्यों हकलाऊं" जैसी पंक्तियाँ कहने वाले आधुनिक हिंदी साहित्य के अमर काव्य -शिल्पी वैद्यनाथ मिश्र अर्थात बाबा नागार्जुन का जन्मदिवस। तो आइए इस अवसर पर कूड़ा-करकट टीम की ओर से पढ़ते हैं बाबा द्वारा रचित कविता"बादल को घिरते देखा है" Photo edit by:- आमिर 'विद्यार्थी' बादल को घिरते देखा है अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है। छोटे-छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को, मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है, बादलों को घिरते देखा है। तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी बड़ी कई झीलें हैं, उनके श्यामल नील सलिल में समतल देशों से आ-आकर पावस की ऊमस से आकुल तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते हँसों को तिरते देखा है। बादल को घिरते देखा है। ऋतु वसंत का सुप्रभात था मंद-मंद था अनिल बह रहा बालारुण की मृदु किरणों थीं अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे एक दूसरे से