24 जून श्रद्धाराम फिल्लौरी पुण्यतिथि


आज है 24 जून यानी भाग्यवती उपन्यास तथा ओम जय जगदीश हरे... जैसी उत्तर भारत में प्रसिद्ध आरती लिखने वाले श्रीयुत श्रद्धाराम फिल्लौरी की पुण्यतिथि | तो पढ़ते हैं डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा 'अरुण' द्वारा लिखित लेख | 

 




डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’


पूरे विश्व में अपनी कालजयी ‘आरती’ लिखकर अमर होने वाले पंडित श्रद्धाराम ‘फिल्लौरी’ का प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास ‘भाग्यवती’ आज भी हिंदी का ‘प्रथम’ उपन्यास माना जाता है। ओम जय जगदीश हरे… शब्दों वाली आरती के रचयिता पंडित श्रद्धाराम ‘फिल्लौरी’ भले ही धार्मिक ग्रंथों, काव्यों और पदों के रचयिता रहे हों, लेकिन आज भी हिंदी साहित्य के इतिहास में पंजाब के इस हिंदी सेवी का नाम अमर है। ‘भाग्यवती’ उपन्यास के साथ ही सिद्धांत ग्रन्थ सत्यामृत प्रवाह के अतिरिक्त लगभग डेढ़ दर्शन कृतियों के रचनाकार फिल्लौरी जी ने फारसी, उर्दू, पंजाबी से हिंदी में अनुवाद का विपुल कार्य भी किया है।
हिंदी के ‘प्रथम’ उपन्यास को लेकर छिड़ा विवाद तो थम गया है और परीक्षा गुरु को कुछ तकनीकी आधारों पर हिंदी का ‘पहला’ उपन्यास घोषित कर दिया गया है, लेकिन ‘कालजयी’ हिंदी रचना के रूप में सन‍् 1877 में प्रकाशित इस उपन्यास का दुर्भाग्य ही है कि हिंदी के समीक्षकों ने इस पर उस गंभीरता से विचार नहीं किया, जिसकी अपेक्षा थी। मुझे संतोष इस बात का है कि हिंदी के नामचीन आलोचकों ने इसे उपन्यास माना और हिंदी का दूसरा उपन्यास तो कहा ही है।
‘हिंदी साहित्य कोष’ में भाग्यवती को ‘सामाजिक उपन्यास’ स्वीकार करते हुए कहा गया है कि हिंदी का पहला मौलिक उपन्यास होने के कारण ऐतिहासिक महत्व रखता है। हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने वाले पं. राम चन्द्र शुक्ल ने ‘पहली बार’ उपन्यास शब्द का प्रयोग करते हुए लिखा था- ‘भाग्यवती’ नाम का एक सामाजिक उपन्यास भी संवत 1934 में उन्होंने (पं. फिल्लौरी जी ने) लिखा, जिसकी बड़ी प्रशंसा हुई। यहां मैं विशेष रूप से पं. राम चन्द्र शुक्ल द्वारा श्रीनिवासदास रचित परीक्षा गुरु को शिक्षाप्रद उपन्यास और पं. श्रद्धाराम ‘फिल्लौरी’ द्वारा रचित भाग्यवती को अंग्रेज़ी ढंग का मौलिक उपन्यास पहले पहल हिंदी में माना, लेकिन अंग्रेज़ी ढंग का उपन्यास माने जाने के कारण भाग्यवती को हिंदी का प्रथम उपन्यास घोषित नहीं किया गया।
वस्तुतः हिंदी के समीक्षकों ने इस उपन्यास के रचयिता की भूमिका में लिखे कुछ शब्दों के कारण इसे शिक्षाप्रद ग्रन्थ मान लिया,जबकि मेरी दृष्टि में तो आज भी यह उपन्यास स्त्री-विमर्श की कसौटी पर खरा उतरता है। ‘फिल्लौरी’ जी की भूमिका से साफ़ है कि भाग्यवती स्त्री-शिक्षा पर केंद्रित ऐसा उपन्यास है जो ‘नवजागरण और नई चेतना’ के प्रभाव को प्रकट करता है। इस उपन्यास के मूल में भी ‘सुधारवादी आन्दोलनों की प्रेरणा’ और ‘नारी-मुक्ति’ ही है। गोपाल राय ने लिखा है-भाग्यवती का चरित्र अविश्वसनीय होने पर भी स्वावलम्बन का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करता है। लेखक ने इसमें ‘बाल विवाह’ का जोरदार विरोध किया है,जो हिन्दू जाति में जड़ जमाए बैठी रूिढ़वादिता और गन्दगी का प्रमाण रहा है। ‘भाग्यवती’ उपन्यास की पृष्ठभूमि काशी और हरिद्वार को केंद्र में रख कर निर्मित की गई है। फिल्लौरी जी ने अपने युग के मध्यवर्गीय समाज का सहज चित्रण इस कालजयी रचना में किया है। श्रद्धाराम ‘फिल्लौरी’ का समग्र साहित्य ग्रंथावली के रूप में उपलब्ध है। भाग्यवती जैसी कालजयी रचना निश्चय ही पठनीय है।




              - साभार :  'दैनिक ट्रिब्यून' से 

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