आलोक धन्वा जन्मदिवस

आज है 2 जुलाई यानी "महज जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है"जैसी आदि बहुमूल्य काव्य पंक्ति लिखकर आधुनिक हिंदी कवियों में एक प्रमुख स्थान बनाने वाले हम सब के प्रिय कवि श्रीयुत'आलोक धन्वा' का जन्मदिवस। तो इस अवसर पर आइए आज पढ़ते हैं कूड़ा-करकट टीम की ओर से आलोक धन्वा द्वारा रचित कवितायें।




 1:- (मुलाक़ातें )




अचानक तुम आ जाओ

इतनी रेलें चलती हैं
भारत में
कभी
कहीं से भी आ सकती हो
मेरे पास

कुछ दिन रहना इस घर में
जो उतना ही तुम्हारा भी है
तुम्हें देखने की प्यास है गहरी
तुम्हें सुनने की

कुछ दिन रहना
जैसे तुम गई नहीं कहीं

मेरे पास समय कम
होता जा रहा है
मेरी प्यारी दोस्त

घनी आबादी का देश मेरा
कितनी औरतें लौटती हैं
शाम होते ही
अपने-अपने घर
कई बार सचमुच लगता है
तुम उनमें ही कहीं
आ रही हो
वही दुबली देह
बारीक चारखाने की
सूती साड़ी
कंधे से झूलता
झालर वाला झोला
और पैरों में चप्पलें
मैं कहता जूते पहनो खिलाड़ियों वाले
भाग दौड़ में भरोसे के लायक

तुम्हें भी अपने काम में
ज़्यादा मन लगेगा
मुझसे फिर एक बार मिलकर
लौटने पर

दुख-सुख तो
आते जाते रहेंगे
सब कुछ पार्थिव है यहाँ
लेकिन मुलाक़ातें नहीं हैं
पार्थिव
इनकी ताज़गी
रहेगी यहीं
हवा में !
इनसे बनती हैं नई जगहें
एक बार और मिलने के बाद भी
एक बार और मिलने की इच्छा
पृथ्वी पर कभी ख़त्म नहीं होगी।।





2 :- (छतों पर लड़कियाँ)

अब भी
छतों पर आती हैं लड़कियाँ
मेरी ज़िंदगी पर पड़ती हैं उनकी परछाइयाँ।

गो कि लड़कियाँ आयी हैं उन लड़कों के लिए
जो नीचे गलियों में ताश खेल रहे हैं
नाले के ऊपर बनी सीढियों पर और
फ़ुटपाथ के खुले चायख़ानों की बेंचों पर
चाय पी रहे हैं
उस लड़के को घेर कर
जो बहुत मीठा बजा रहा है माउथ ऑर्गन पर
आवारा और श्री 420 की अमर धुनें।

पत्रिकाओं की एक ज़मीन पर बिछी दुकान
सामने खड़े-खड़े कुछ नौजवान अख़बार भी पढ़ रहे हैं।
उनमें सभी छात्र नहीं हैं
कुछ बेरोज़गार हैं और कुछ नौकरीपेशा,
और कुछ लफंगे भी

लेकिन उन सभी के ख़ून में
इंतज़ार है एक लड़की का !
उन्हें उम्मीद है उन घरों और उन छतों से
किसी शाम प्यार आयेगा !





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